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उद्योग और व्यापार को नियन्त्रित करना आसान नहीं होता है सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज) कोई भी देश जब आर्थिक विकास की ओर बढ़ता है तो उद्योगपतियों, व्यापारियों सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बीच आपसी हित के सम्बन्ध बन जाते हैं। इसमें से कई संबंध अवांछित भी होते है। विभिन्न देशों की सरकारें समय समय पर सुझाव आमंत्रित करती रहती है जिससे कालान्तर में सुझावों और कानून कायदों का एक जाल सा बन जाता है जिसमें उलझकर कितनी ही औद्योगिक इकाइयाँ दम तोड़ देती है जबकि सत्ताधारी लोगों के करीबी उद्योगपति उसी जाल की वजह से अल्पकाल में ही मालामाल हो जाते हैं। राजनीति धनी लोगों के परोक्ष सहयोग से चलती है इसीलिये राजनेता को घनी से दूर कभी भी नहीं किया जा सकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर कुछ ऐसा तन्त्र बनाने के वैश्विक प्रयास लम्बे समय से हो रहे हैं जहाँ आर्थिक व्यवस्था को बड़े नुकसान का शिकार होने से बचाया जा सकता है। इसी संदर्भ में सन् 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान ब्रिटेन ने व्यापार और उद्योग को नियन्त्रित करने के तन्त्र का एक ब्लूप्रिन्ट बनाया था इस तन्त्र में दो तरह के नियन्त्