उद्योग और व्यापार को नियन्त्रित करना आसान नहीं होता है सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज) कोई भी देश जब आर्थिक विकास की ओर बढ़ता है तो उद्योगपतियों, व्यापारियों सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बीच आपसी हित के सम्बन्ध बन जाते हैं। इसमें से कई संबंध अवांछित भी होते है। विभिन्न देशों की सरकारें समय समय पर सुझाव आमंत्रित करती रहती है जिससे कालान्तर में सुझावों और कानून कायदों का एक जाल सा बन जाता है जिसमें उलझकर कितनी ही औद्योगिक इकाइयाँ दम तोड़ देती है जबकि सत्ताधारी लोगों के करीबी उद्योगपति उसी जाल की वजह से अल्पकाल में ही मालामाल हो जाते हैं। राजनीति धनी लोगों के परोक्ष सहयोग से चलती है इसीलिये राजनेता को घनी से दूर कभी भी नहीं किया जा सकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर कुछ ऐसा तन्त्र बनाने के वैश्विक प्रयास लम्बे समय से हो रहे हैं जहाँ आर्थिक व्यवस्था को बड़े नुकसान का शिकार होने से बचाया जा सकता है। इसी संदर्भ में सन् 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान ब्रिटेन ने व्यापार और उद्योग को नियन्त्रित करने के तन्त्र का एक ब्लूप्रिन्ट बनाया था इस तन्त्र में दो तरह के नियन्त्रण सुझाय गए थे जिनको ट्विन पीक (जुड़वां शिखर) कहा जाता है। इस माडल के एक शिखर पर विवेकी प्रबन्धकर्ता (प्रूडेन्शियल रेगुलेटर) होता है जो लगातार इस बात को देखता रहता है कि कम्पनी इस तरह से कार्य या विस्तार नहीं करे जिसके फलस्वरूप वह अपनी महत्वाकाँक्षाओं के दबाव में नष्ट हो जाए। दूसरे शिखर पर व्यापार व्यवहार की प्रहरी संस्था होती है जो इन बातों पर नजर रखती है कि बैंकिंग तन्त्र कहीं बिखर नहीं जाए और उसके ग्राहक कहीं संकट में नहीं पड़ जाए। हाँलाकि ब्रिटेन अभी यह तन्त्र लागू नहीं कर पाया है लेकिन आस्ट्रेलिया, नीदरलैण्डस, इटली दक्षिणी अफ्रिका और फ्रांस ने ऐसा द्विशिखर तंत्र अपने देश में प्रारम्भ कर दिया है। इस तन्त्र से भिन्न अमेरिका का आर्थिक व्यवस्था तन्त्र है जहाँ नियन्त्रकों की भरमान है। वहां बैंकों के कोई एक दर्जन फेडरल नियन्त्रक ऐसे है जो गैर बैंकिंय वित्तिय संस्थानों का कोई भी नियंत्रक नहीं होता। एक जैसा कार्य करने वाली कम्पनियों के अलग अलग नियन्त्रक और कायदे हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर 2007 में एक मार्गेज कम्पनी जो गिरवी रखकर ऋण देती थीं जब तकलीफ में आई तो अमेरिकी फेड के शिकंजे से निकलने के लिए बचत और ऋण कम्पनी में तब्दील होकर किसी भी निरीक्षण और नियन्त्रण से मुक्त हो गई। अमेरिका में बैंकों पर जहां राज्यों के हिसाब से 6-7 नियन्त्रक होते है वहीं क्रिप्टो करैन्सी आदि पर कोई नियन्त्रण नहीं होता है। इन सब के अलावा यू एस कांग्रेस की कितनी ही कमेटियाँ होती है जो बैंक और कई वित्तिय संस्थानों के प्रबन्धनको को बुलाकर सीनेट में लम्बी पूछताछ करती रहती है जिसकी वजह से कई बार कुछ बैंकों की कार्य प्रणाली बाधित होती है तथा मुनाफा भी प्रभावित होता है। अमेरिका में भुगतान करने वाली कम्पनियों की बड़ी आफत है क्योंकि वहां पर भूगतान पूरी तरह से राज्यों का मामला है। इसके फलस्वरूप पे पाल जैसी विश्व की सबसे बड़ी पेमेन्ट एप को पचास लाइसेंस लेने पड़ते है। अमेरिका बिल्कुल विपरीत चीन में पूरे आर्थिक तन्त्र का एक ही नियन्त्रक है जिसे राष्ट्रीय वित्तिय नियन्त्रण व्यवस्थापक कहा जाता है। चीन की बैंकों पर कड़ा केन्द्रिय नियन्त्रण है और उपरोक्त व्यवस्थापक बैंक, इन्श्योरेन्स कम्पनियों और औद्योगिक घरानों को कड़ाई से नियन्त्रित करता है तथा चीन की केन्द्रिय बैंक के नियन्त्रण से बाहर होता है। चीन मे शेयर कमोडिटी मार्केट का नियन्त्रण एक अलग संस्था करती है। इन सबके बीच भारत में बीच का रास्ता नजर आता है जहाँ वित्तिय प्रणालियों की देखभाल अभी तो ठीक तरह से हो रही है और यदि राजनीतिक दखलन्दाजी नहीं होगी तो तन्त्र कुल मिलाकर अच्छा कार्य कर रहा है। अब देखना होगा कि कौनसा तन्त्र सबसे सुरक्षित होने के साथ विकास की गति को बनाए रखता है। चीन के पास तो तन्त्र चूँकि एक ही नियन्त्रक के अधीन है तो वहाँ या तो भ्रष्टाचार या तानाशाही की प्रबल संभावनाएं होती है। इसके अलावा व्यापक संवाद नहीं होने से जो नीतियां बनाई जाती है वे बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण वाली हो सकती है। अमेरिका का माडल समय के थपेड़े खाकर विकसित हुआ है जिसमें बेईमानी की तो जा सकती है परन्तु पकड़े जाने की सम्भावनाएं भी अच्छी रहती है। अमेरिका में अति धनी लोग कोई आयकर नहीं देते क्योंकि राजनेताओं के साथ मिलकर वे ऐसे कानून बनवा लेते हैं जिनकी आड में वे कर देने से बच जाते हैं। ब्रिटेन द्वारा प्रस्तावित नवीनतम व्यवस्था अच्छी लग रही है परन्तु चीन केन्द्रिय तानाशाही और अमेरिका बडे उद्यमियो के प्रमाव की वजह से इसे अपने यहाँ लागू नहीं होने देंगे। उभरती अर्थव्यवस्था के चलते भारत इसपार पर सरकार का शिकंजा कमजोर पड़ सकता है। 17.09.2023 प्रणाली को उपयोग में ले सकता है परन्तु चुनावों में हो रहें बड़े धन व्यय एवं नेता-अफसर गठजोड़ के चलते यहां भी जो ढर्रा चल रहा है वहीं जारी रहता प्रतीत हो रहा है। आशा की एक किरण ब्लॉक चेन तकनीकी नजर आती है जिसमें मुद्रा और व्या -- *इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल* CAIIB (1975) - Retd. Banker Website- www.beawarhistory.com (Since 2002) Follow me on Twitter - https://twitter.com/@vasudeomangal Facebook Page- https://www.facebook.com/vasudeo.mangal Blog- https://vasudeomangal.blogspot.com contact no. 9983724100

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